यह हैं सांचौर का वह मंदिर जहाँ हर पूर्णिमा को लगता हैं मेला, पाकिस्तान से भी आते थे श्रद्धालु
सांचौर से 35 किलोमीटर दूर नेहड़ क्षेत्र के सीमांत गांव खासरवी स्थित एक देवी पीठ, जो सिद्ध देवी पीठ माँ भगवती ढब्बावाली के नाम से विख्यात हैं, पर हर माह की पूर्णिमा को मेला लगता हैं और अनेक जगहों से श्रद्धालु आते हैं।
हाड़ेचा/सांचौर: सांचौर से 35 किलोमीटर दूर नेहड़ क्षेत्र के सीमांत गांव खासरवी स्थित एक देवी पीठ, जो सिद्ध देवी पीठ माँ भगवती ढब्बावाली के नाम से विख्यात हैं, पर हर माह की पूर्णिमा को मेला लगता हैं और अनेक जगहों से श्रद्धालु आते हैं। माता ढब्बावाली की प्राचीन मूर्ति काष्ठ की बनी हैं।
ढब्बावाली माता नाम कैसे पड़ा
ढब्बा जी माता के परम भक्त थे और उन्होंने ही माता के शक्तिपीठ के लिए उन्नत धोरे का चयन किया था।
अपने इस भक्त ढब्बाजी का नाम अमर करने के लिए माँ भगवती ने ढब्बा नाम अपना लिया और कहलाने लगी “ढब्बा और वाली “ यानि ढब्बाजी तो भक्त का नाम था एवं वाली का अर्थ अपनाया और कहलाने लगी ढब्बावाली।
साथ ही माता को आवड़ माता के नाम से भी जाना जाता हैं।
मेला और खास बात
माताजी के इस मंदिर में प्रत्येक पूर्णिमा को मेला लगता हैं जिसमे हजारों की संख्या में श्रद्धालु माँ के द्वार माथा टेककर मन्नत मांगते हैं।
यहाँ से जुड़ी एक खास दिलचस्प बात यह हैं कि माताजी को भोग लगाई हुई प्रसाद हम खासरवी क्षेत्र से बाहर नहीं ले जा सकते।
पाकिस्तान से मन्नत मांगने आते थे श्रद्धालु
देश की आजादी से पहले पाकिस्तान से भी श्रद्धालु इस मंदिर में माथा टेकने आते थे और आज भी माता के दरबार में मन्नत मांगने वाले भक्तों की झोली माता भर देती है।
यहां पर राजस्थान समेत अन्य राज्यों से भी माता के दर्शन के लिए हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
गादीपति भवानीगिरी के अनुसार लोगों में आस्था होने से माता की धूणी पर कच्छ के रण सहित पाकिस्तान से भी लोग यहां रात्रि विश्राम करते थे।
माता के चमत्कार से यहां कभी नहीं होती थी चोरी
गांव के बड़े-बूढ़ों का कहना है कि जिस क्षेत्र में यह मंदिर है, वहां चोर चोरी करने से भी घबराते थे। अगर चोरी कर भी लेते तो चुराया हुआ सामान गांव में छोडऩे के बाद ही चोर गांव की सीमा से बाहर जा पाते थे।
गांव में बिना दरवाजों के होते थे घर और घरों की नही बनाई जाती थी छत
वहीं मंदिर की छत नहीं होने से गांव में किसी भी घर पर छत नहीं बनवाई जाती थी। वहीं घर के दरवाजे तक नहीं लगवाए जाते थे।
पूर्व में पूजारी शक्तिगिरी की ओर से माता से मन्नत मांगने के साथ ही मंदिर का निर्माण कर मंदिर की छत बनवाई गई। इसके बाद गांव में अन्य घरों में छत बनाई गई।
पूरी होती है मनोकामनाएं
यहां के श्रद्धालु व पुजारी बताते हैं कि माता से कोई भी मंन्नत मांगने पर भक्त की मनोकानाएं पूर्ण होती है। कामनाएं पूर्ण होने के बाद राजस्थान सहित अन्य राज्यों से हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु माता के दरबार में पूजा-अर्चना करने यहां आते हैं।
इस साल होगी प्रतिष्ठा
माता का नया मंदिर कई सालों से बना हुआ है, लेकिन अब तक मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हो पाई है। इस साल शरद ऋतु में माता के नए मंदिर की जोर शोर से प्राण-प्रतिष्ठा होगी। यहां मंदिर ट्रस्ट बना हुआ है।
पहुँचने के रास्ता और सुविधाएं
मां ढब्ब्वाली के मंदिर तक पहुंचने के लिए साँचोर,हाड़ेचा और वेडिया से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। साथ ही अन्य छोटे गाँवो से भी आवागमन के साधन उपलब्ध हैं।
हर मास की पूर्णिमा को भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशाला भी हैं।
Source:
1. महासिद्ध शक्ति माँ ढब्बावाली देवी India, by Shaktidan Maliya. Published by Rajasthani Granthagar Sojati Gate Jodhpur, 2004. Page.48
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